मातृ मूर्ति पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी

मातृ मूर्ति

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी | शांत रस | आधुनिक काल

क्या तुमने मेरी माता का देखा दिव्याकार, 
उसकी प्रभा देख कर विस्मय-मुग्ध हुआ संसार ।। 

अति उन्नत ललाट पर हिमगिरि का है मुकुट विशाल, 
पड़ा हुआ है वक्षस्थल पर जह्नुसुता का हार।। 

हरित शस्य से श्यामल रहता है उसका परिधान, 
विन्ध्या-कटि पर हुई मेखला देवी की जलधार।। 

भत्य भाल पर शोभित होता सूर्य रश्मि सिंदूर, 
पाद पद्म को प्रक्षालित है करता सिंधु अपार।. 

सौम्य बदन पर स्मित आभा से होता पुष्प विराम, 
पाद पद्म को प्रक्षालित है करता सिंधु अपार ।। 

दयामयी वह सदा हस्त में रखती भिक्षा-पात्र, 
जगधात्री सब ही का उससे होता है उपकार ।। 

देश विजय की नहीं कामना आत्म विजय है इष्ट , 
इससे ही उसके चरणों पर नत होता संसार ।।

अपने विचार साझा करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com