जो आईने में है उसकी तरफ़दारी भी करनी है  राजेश रेड्डी

जो आईने में है उसकी तरफ़दारी भी करनी है 

राजेश रेड्डी | शांत रस | आधुनिक काल

जो आईने में है उसकी तरफ़दारी भी करनी है ।
मगर जो हममें है उससे हमें यारी भी करनी है ।

ज़माने भर में ज़ाहिर अपनी खुद्दारी भी करनी है,
मगर दरबार में जाने की तैयारी भी करनी है ।

हर इक से मिलने-जुलने की क़वायद से भी बचना है,
हर इक से मिलने-जुलने की अदाकारी भी करनी है ।

है मोहलत चार दिन की और हैं सौ काम करने को,
हमें जीना भी है मरने की तैयारी भी करनी है ।

मिलाकर अपनी ही कमज़ोरियों से हाथ छुप-छुप कर,
ख़ुद अपने आप से थोड़ी-सी गद्दारी भी करनी है ।

ख़ुद अपने आप से होते भी रहना है फ़रार अक्सर,
ख़ुद अपने आपकी अक्सर गिरफ्तारी भी करनी है ।

ख़ुदा की रहमतों को रायगाँ जाने भी दें कैसे,
हमें ये पाप की गठरी ज़रा भारी भी करनी है ।

हमारे पाँव थकने लग गए आसान रस्तों पर,
सफ़र में अपने पैदा थोड़ी दुश्वारी भी करनी है ।

छुपाते आए हैं हम जिनसे अब तक अपने अश्कों को,
बयाँ हमको उन्हीं लफ्ज़ों में लाचारी भी करनी है ।

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