विद्यापति
देसिल वयना अर्थात् मैथिली में लिखे चंद पदावली कवि को अमरत्व प्रदान करने के लिए काफी है। मैथिली साहित्य में मध्यकाल के तोरणद्वार पर जिसका नाम स्वर्णाक्षर में अंकित है, वे हैं चौदहवीं शताब्दी के संघर्षपूर्ण वातावरण में उत्पन्न, अपने युग का प्रतिनिधि, मैथिली साहित्य-सागर का वाल्मीकि-कवि कोकिल विद्यापति ठाकुर | बहुमुखी प्रतिमा-सम्पन्न इस महाकवि के व्यक्तित्व में एक साथ चिन्तक, शास्रकार तथा साहित्य रसिक का अद्भुत समन्वय था । संस्कृत में रचित इनकी पुरुष परीक्षा, भू-परिक्रमा, लिखनावली, शैवसर्वश्वसार, शैवसर्वश्वसार प्रमाणभूत पुराण-संग्रह, गंगावाक्यावली, विभागसार, दानवाक्यावली, दुर्गाभक्तितरंगिणी, गयापतालक एवं वर्षकृत्य आदि ग्रन्थ जहाँ एक ओर इनके गहन पाण्डित्य के साथ इनके युगद्रष्टा एवं युगस्रष्टा स्वरुप का साक्षी है तो दूसरी तरफ कीर्तिलता, एवं कीर्तिपताका महाकवि के अवह भाषा पर सम्यक ज्ञान के सूचक होने के साथ-साथ ऐतिहासिक, साहित्यिक एवं भाषा सम्बन्धी महत्व रखनेवाला आधुनिक भारतीय आर्य भाषा का अनुपम ग्रन्थ है।
परन्तु विद्यापति के अक्षम कीर्ति का आधार, जैसा कि पहले कहा जा चुका है, है मैथिली पदावली जिसमें राधा एवं कृष्ण का प्रेम प्रसंग सर्वप्रथम उत्तरभारत में गेय पद के रुप में प्रकाशित है। महाकवि विद्यापति का जन्म वर्तमान मधुबनी जनपद के बिसपू नामक गाँव में एक सभ्रान्त मैथिल ब्राह्मण गणपति ठाकुर (इनके पिता का नाम) के घर हुआ था। बाद में यसस्वी राजा शिवसिंह ने यह गाँव विद्यापति को दानस्वरुप दे दिया था। इस दानपत्र कि प्रतिलिपि आज भी विद्यापति के वंशजों के पास है जो आजकल सौराठ नामक गाँव में रहते हैं। उपलब्ध दस्तावेजों एवं पंजी-प्रबन्ध की सूचनाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि महाकवि अभिनव जयदेव विद्यापति का जन्म ऐसे यशस्वी मैथिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था, जिस पर विद्या की देवी सरस्वती के साथ लक्ष्मी की भी असीम कृपा थी। इस विख्यात वंश में (विषयवार विसपी) एक-से-एक विद्धान्, शास्रज्ञ, धर्मशास्री एवं राजनीतिज्ञ हुए । ऐसे किसी भी लिखित प्रमाण का अभाव है जिससे यह पता लगाया जा सके कि महाकवि कोकिल विद्यापति ठाकुर का जन्म कब हुआ था। यद्यपि महाकवि के एक पद से स्पष्ट होता है कि लक्ष्मण-संवत् २९३, शाके १३२४ अर्थात् मन् १४०२ ई. में देवसिंह की मृत्यु हुई और राजा शिवसिंह मिथिला नरेश बने। मिथिला में प्रचलित किंवदन्तियों के अनुसार उस समय राजा शिवसिंह की आयु ५० वर्ष की थी और कवि विद्यापति उनसे दो वर्ष बड़े, यानी ५२ वर्ष के थे। इस प्रकार १४०२-५२उ१३५० ई. में विद्यापति की जन्मतिथि मानी जा सकती है । लक्ष्मण-संवत् की प्रवर्त्तन तिथि के सम्बन्ध में विवाद है। कुछ लोगों ने सन् ११०९ ई. से, तो कुछ ने १११९ ई. से इसका प्रारंभ माना है। स्व. नगेन्द्रनाथ गुप्त ने लक्ष्मण-संवत् २९३ को १४१२ ई. मानकर विद्यापत् की जन्मतिथि १३६० ई. में मानी है। ग्रिपर्सन और महामहोपाध्याय उमेश मिश्र की भी यही मान्यता है। परन्तु श्रीब्रजनन्दन सहाय "ब्रजवल्लभ", श्रीराम वृक्ष बेनीपुरी, डॉ. सुभद्र झा आदि सन् १३५० ई. को उनका जन्मतिथि का वर्ष मानते हैं। डॉ. शिवप्रसाद के अनुसार "विद्यापति का जन्म सन् १३७४ ई. के आसपास संभव मालूम होता है।" अपने ग्रन्थ विद्यापति की भूमिका में एक ओर डॉ. विमानविहारी मजुमदार लिखते है कि "यह निश्चिततापूर्वक नहीं जाना जाता है कि विद्यापति का जन्म कब हुआ था और वे कितने दिन जीते रहे" (पृ। ४३) और दूसरी ओर अनुमान से सन् १३८० ई. के आस पास उनकी जन्मतिथि मानते हैं।
विद्यापति ने संस्कृत, अवहट्ट और मैथिली तीन भाषाओँ में रचना की हैं
परिचय
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