कुछ लिखते हुए Prashant Kumar Dwivedi
कुछ लिखते हुए
Prashant Kumar Dwivediकुछ सँभलते हुए चोट खाते हुए।
हम चले आये हैं गुनगुनाते हुए।
रात की रात गुजरी हैं यूँ ही मेरी,
याद करते हुए याद आते हुए।
यादों का कारवां दिल से गुज़रा है फिर,
हमको किस्से हज़ारों सुनाते हुए।
अब तो थोड़ा यकीं कर ले जानाँ मेरी,
एक अरसा हुआ आजमाते हुए।
आज भी दिल की धड़कन उखड़ जाये है,
तेरी नज़रों से नज़रें मिलाते हुए।
बात की बात में लो ग़ज़ल बन गयी,
कुछ लिखते हुए,कुछ मिटाते हुए।