ठीक नहीं Prashant Kumar Dwivedi
ठीक नहीं
Prashant Kumar Dwivedi"ज़ख्मों को नासूर बनाना ठीक नहीं।
गलती को फिर से दोहराना ठीक नहीं।
खुले सच पर भी सवाल उठाना क्यों,
बातों को इतना उलझाना ठीक नहीं।
गम में भी जीस्त की रवानगी रहने दो,
चलते चलते यूँ रुक जाना ठीक नहीं।
हर ज़माने में कहते हैं ज़माने वाले,
पहले था पर आज ज़माना ठीक नहीं।
कुछ लोगों खलती है तुम्हारी ख़ुशी,
महफ़िल में खुलकर मुस्काना ठीक नहीं।
नामवरी के पीछे ही रुसवाई है,
महफ़िल-महफ़िल ग़ज़लें गाना ठीक नहीं।
