शायरी के सिवा Prashant Kumar Dwivedi
शायरी के सिवा
Prashant Kumar Dwivediदिल को दर्द आँख को नमी के सिवा।
मिला क्या है लबों को तिश्नगी के सिवा।
ना उम्र न दौलत न शोहरत मांगी,
माँगा क्या तुझसे उस परी के सिवा।
जब भी तुझसे रज़ामंदी चाही,
मिला है मुझको क्या नहीं के सिवा।
तुमको चाहा है टूटकर हमने,
कमी क्या है मुझमे इस कमी के सिवा।
दीवाना,परवाना,झूठा या बेवफ़ा,
कहो सबकुछ हमको अजनबी के सिवा।
पूछूँ तो आइना भी उम्र कम बताता है,
कोई सच नहीं कहता है अब घड़ी के सिवा।
जन्नतें भी खरीद लो फिर भी,
हासिल क्या है दो गज ज़मीं के सिवा।
सियासतदानों की साफगोई में ,
दिखा कुछ नहीं मुझको गन्दगी के सिवा।
सरकारी दफ्तरों को देख कर हैरत में हूँ,
होता क्या है यहाँ और हाजिरी के सिवा!
जिन फकीरों ने लफ्जों को आजाद किया,
मिला क्या है उनको हथकड़ी के सिवा।
न सियासत न फरेब न होशियारी,
आता क्या है हमको शायरी के सिवा।