जाग उठो हे भरत पुत्र ! Prashant Kumar Dwivedi
जाग उठो हे भरत पुत्र !
Prashant Kumar Dwivedi"अब भारत की जिम्मेदारी भारत माँ के प्यारों पर है।
जाग उठो हे भरत पुत्र! कि संकट अब अधिकारों पर है।
क्षण-क्षण गिन के वक़्त मिला है,ऐसा न हो चुक जाये।
अपने अश्वमेघ का घोड़ा,देश में ही न रुक जाये।
इतिहासों को मुँह दिखलाना,संभव न हो पायेगा,
यदि हमारी शान तिरंगा,भारत में ही झुक जाये।
नहीं भरोसा राजनीती पर,अब विश्वास कटारों पर है।
जाग उठो हे भारत पुत्र!संकट अब अधिकारों पर है।
पुरुषार्थों से नहीं,सदा हम राजीनीति से हारे हैं।
भरे दलालों से सारे सत्ता के गलियारे हैं,
क्यों रोते हो "जे एन यू" में देश विरोधी नारे हैं,
तुमने ही जम्मू में गद्दारों के पाँव पखारे हैं।
जितना शक गद्दारों पर है,उतना पहरेदारों पर है।
जाग उठो हे भरत पुत्र!कि संकट अब अधिकारों पर है।
जब भारत के लाल कभी घाटी में मारे जाते हैं।
हम नेहरू जैसे पुरखों की गलती पर पछताते हैं।
जेल नहीं,फाँसी भी नहीं,अब सीधे गर्दन काटेंगे,
आस्तीन के सांपों को अंतिम संकल्प सुनाते हैं।
बर्फ की ठण्डी घाटी में, झेलम अब अंगारों पर है।
जाग उठो हे भरत पुत्र!संकट अब अधिकारों पर है।"