साक़ी Prashant Kumar Dwivedi
साक़ी
Prashant Kumar Dwivediपहेली को जवाब कर साकी!
महकशी बेहिसाब कर साकी!
मैकदों में भी तिश्नगी सी है,
आंसुओं को शराब कर साकी।
मुस्कराहट में कुछ उदासी है,
आज कुछ इंक़लाब कर साकी।
सलीकों में घुटन सी होती है,
मेरी आदत ख़राब कर साकी!
दर्द से लफ्ज चुरा ग़ज़ल बना,
शबनमों को शबाब कर साकी।
आ दिखाऊँ तुझे तस्वीर उसकी,
दीद-ए-आफ़ताब कर साकी।
इबादत-ए-इश्क़ अगर पढ़नी हो,
उसका चेहरा किताब कर साकी।