तुम अगर लौट कर नहीं आये  Prashant Kumar Dwivedi

तुम अगर लौट कर नहीं आये

Prashant Kumar Dwivedi

सुनो हमदम! मेरे हमदम तुम अगर लौट कर नहीं आये!!
तृषित ही ये अधर होंगे,बिना इस उम्र मुस्काये!!

वो खुद से बात तो होगी,मगर अधूरी सी।
ज़िन्दगी साथ तो होगी,मगर अधूरी सी।
ढलती साँझ पर तो गीत मैं तब भी लिखूँगा,
चाँदनी रात तो होगी,मगर अधूरी सी।

चाँदनी रात भी हिय में अँधेरे सींचेगी,तुम अगर रौशनी नहीं लाये!!
सुनो हमदम! मेरे हमदम तुम अगर लौट कर नहीं आये!!

तब तो मुस्कुराने की वजह मैं और ढूँढ़ूँगा!
किसी से दिल लगाने की वजह मैं और ढूँढ़ूँगा।
हाँ अपराध तो होगा मेरे दिल में बसने वाले,
पर तुमसे दूर जाने की वजह मैं और ढूँढ़ूँगा।

सजेंगी महफ़िलें ग़ज़लों कि लेकिन ऐ मेरे हमदम,रहेंगे दर्द अनगाये!
सुनो हमदम!मेरे हमदम! तुम अगर लौट कर नहीं आये!!

बहेगी आँख से गंगा मगर पावन तो न होगी।
उमड़ती भावना मेरी कभी सावन तो न होगी।
उतरकर के सियाही में,घिसेगी रोज कागज़ पर,
मगर पीड़ा मेरे मन की कभी चन्दन तो न होगी!

कुवाँरी वेदनाएँ जो सुहागन हो न पाईं तो,
देह न प्राण छोड़ेगी बिना तुमसे विदा पाये!!
सुनो हमदम!मेरे हमदम! तुम अगर लौट कर नहीं आये!!""-प्रशान्त!!

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