भला कैसे होगा Prashant Kumar Dwivedi
भला कैसे होगा
Prashant Kumar Dwivediवो किस्सा जो आबाद किया,बर्बाद भला कैसे होगा।
तुमको बिसराने का हमसे अपराध भला कैसे होगा।
एक यही दर्द है जो मुझको थोड़ा जिन्दा रक्खे है,
ये भी नहीं तो दिल आखिर शाद भला कैसे होगा।
हम बिलखें-रोएँ,या फिर यूँ ही देह लिए घुट मर जाएँ,
मन फिर भी तेरी चाहत से आज़ाद भला कैसे होगा।
हम उसकी मायूसी भर से सौ मौतें मर जाते हैं,
एक यही कसक है कि वो मेरे बाद भला कैसे होगा।
ये जख़्म जो दुखते रहते हैं सो ग़ज़लें बन जाती हैं,
यहीं नहीं तो ग़ज़लों का ईज़ाद भला कैसे होगा।
मेरे पढ़ने वाले भी मुझको यूँ ही न भूले हैं,
लिखा नहीं कुछ बहुत दिनों से,याद भला कैसे होगा।
लिखो दर्द "मधूक" नहीं तो हम आवारा रिन्दों का,
साकी संग महखाने में इरशाद भला कैसे होगा।