पीड़ा Prashant Kumar Dwivedi
पीड़ा
Prashant Kumar Dwivediरहें कैसे यूँ हम सधकर!
कहाँ जाएँ तुम्हें तजकर!
कहीं पत्थर की फुलवारी,
कहीं फूलों की है ठोकर!
छुपाएँ अश्रु भी कब तक,
यूँ अपने अक्स को धोकर!
तलक कब दाँत को भींचें,
हम इतने दर्द को सहकर!
रहें कैसे यूँ हम सधकर!
कहाँ जाएँ तुम्हें तजकर!
कहीं पत्थर की फुलवारी,
कहीं फूलों की है ठोकर!
छुपाएँ अश्रु भी कब तक,
यूँ अपने अक्स को धोकर!
तलक कब दाँत को भींचें,
हम इतने दर्द को सहकर!
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