कोमल मन और कटु जीवन  Prashant Kumar Dwivedi

कोमल मन और कटु जीवन

Prashant Kumar Dwivedi

आसमान कुछ धुंधला सा
छांव पीपल की मगर अधूरी सी
कंक्रीट के चबूतरे पर मैं और मेरा निपट अकेलापन
तारों की रौशनी में शीशे सा चमकता तालाब
कितनी शांति ...कितनी शांति ...कितनी शांति ...
और इसे चीरती कच्चे मन की मासूम सी उलझन
हाँ अपराध कि मुस्कुराए थे हम
शमी की शाख की ओट से जी भर उसे निहार लिया था 
और सूनेपन में यूँ ही बैठे ख्वाब सजा लिए थे हमने
व्यथा यही कि ये सब देख लिया लोगों ने
और नहीं देख पाए तो बस
पत्तियों से छनकर आती चाँद की रौशनी में
सलोनी आँखों से टपकी
कंक्रीट पर पड़ी, बूँदें,आंसू ,मोती
..........या भोलापन 

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