इनमे बात तो कुछ है Prashant Kumar Dwivedi
इनमे बात तो कुछ है
Prashant Kumar Dwivediकोई बिछड़ा हुआ प्रेमी,कोई भटका हुआ राही।
कोई टूटा हुआ सपना,कोई बेदर्द तन्हाई।
किसी गोरी की आँखों में खुले वो कल्पना के पट,
कोई तरसा हुआ सावन,बिना साजन के पुरवाई।
इनमे बात तो कुछ है।
कहीं घुटती हुई आहें,कहीं साँसों की वो ज्वाला।
कोई काँटों भरा रस्ता,किसी के पाँव का छाला।
कोई छलकी हुई हाला,कोई टूटा हुआ प्याला,
कोई उचटा हुआ सा मन,कोई सूनी सी मधुशाला।
इनमे बात तो कुछ है।
