हो के रुसवा तेरी निगाहों में Prashant Kumar Dwivedi
हो के रुसवा तेरी निगाहों में
Prashant Kumar Dwivediहो के रुसवा तेरी निगाहों में।
रोए तन्हाइयों की बाँहों में।
तुझको छुप-छुप के बहुत देखा है,
ये भी शामिल मेरे गुनाहों में।
हँस के पूछा है किसी ने मुझसे,
"दर्द कितना है तेरी आहों में!"
आज फिर से उदास है मंज़िल,
कोई रोया बहुत है राहों में।
अब कोई आरजू नहीं बाक़ी,
या खुदा! ले ले अब पनाहों में।