विरहन Prashant Kumar Dwivedi
विरहन
Prashant Kumar Dwivediअबकी सखी जो आए साजन तो बैठे रहेंगे रूठे।
माह कहत इक बरस न आए देखो कितने झूठे।
ना पातियाँ ना देत खबरिया,भूले हमको ऐसे साँवरिया।
भूल भई का हमसे सखी री,प्रीत में हम कब चूके।
अबकी सखी जो आए सजन तो बैठे रहेंगे रूठे।
हाथ पकड़ बैठे जो सईयाँ,अबकी छुड़ा लूँगी मैं बंहियाँ।
चाहे लचके मोरी कलाई,चाहे कंगन टूटे।
अबकी सखी जो आए सजन तो बैठे रहेंगे रूठे।
कच्चा चिट्ठा हर बिरहन का,निस-दिन रटना नाम सजन का।
भाँग-नसा हो छूट भी जाये, मन की लगी ना छूटे।
अबकी सखी जो आए सजन तो बैठे रहेंगे रूठे।
