कब किस का होता है! Prashant Kumar Dwivedi
कब किस का होता है!
Prashant Kumar Dwivediहर एक किश्ती डूब जाती है,भंवर कब किसी का होता है।
मुसाफ़िर ही तो छले जाते हैं,शहर कब किसी का होता है।
क़तील ही नहीं क़ातिल भी मर सकता है,
खुद ही सोचो ज़हर कब किसी का होता है।
होना तो चाहिए हर एक आशिक पे करम,
वो संगदिल मगर कब किसी का होता है।
हाँ ये रोग ही सही,जानलेवा सही पर
मोबब्बत बिन बसर,कब किसी का होता है।
इमारतें हों,झोपडी हो अंजाम क़यामत है,
इंसाफ-ए-हशर,कब किसी का होता है।