रिन्द का फ़लसफ़ा  Prashant Kumar Dwivedi

रिन्द का फ़लसफ़ा

Prashant Kumar Dwivedi

कभी मन्दिर से कभी निकला हूँ महखाने से।
क्या-क्या देख लिया जीस्त तेरे बहाने से।

हमने जब भी पी,बेहिसाब पी साक़ी,
नहीं गिना है कभू मै को यूँ पैमाने से।

जर्रा-जर्रा हुआ है दर्द का बयान मेरा,
इक फ़क़त बात भर छुपाने से।

दिल के अँधेरे नहीं मिटा करते 
गीत चाँद-चाँदनी के गाने से।

मेरी उदासियों को भी तो चैन मिले,
छूट मिल जाये इन्हें तेरी याद आने से।

चाँद के संग चलती है तसव्वुर तेरी,
सुबह खो जाती हैं,चाँद डूब जाने से।

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