अहो भाग्य!  Prashant Kumar Dwivedi

अहो भाग्य!

Prashant Kumar Dwivedi

कंठ में तुम बसे मैं अमर राग हूँ!
अंश हो के तेरा धन्य मैं भाग हूँ!

तुम सृजन हो प्रभु और मैं हूँ सर्जना!
तुम हो अभिव्यक्ति और मैं हूँ अभिव्यंजना!
संगीत तुम मेरी सांसों का हो,
ईश तुम हो मेरे,मैं तेरी वंदना!

मौन के मैं तुम्हारे हूँ ध्वनियाँ प्रभु,
तुम परम प्रेम हो और मैं अनुराग हूँ।

कंठ में तुम बसे मैं अमर राग हूँ!
अंश हो के तेरा धन्य मैं भाग हूँ!

तुम ही जल में प्रभु,तुम ही पाषाण में!
तुम ही सन्धान में,तुम ही व्यवधान में!
भावों में तुम और अभावों में तुम,
अश्रुओं में तुम्ही,तुम ही मुस्कान में!

सुख की भी माप क्यों,दुःख का संताप क्यों,
रंग जीवन के तुम और मैं फाग हूँ!
कंठ में तुम बसे मैं अमर राग हूँ!
अंश हो के तेरा धन्य मैं भाग हूँ!

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