हद करते हो! Prashant Kumar Dwivedi
हद करते हो!
Prashant Kumar Dwivediवादा करके मुकर जाते हो हद करते हो।
यूँ मुझे छोड़कर जाते हो हद करते हो।
गाल सुर्ख हो जाते हैं लट बेतरतीब,
रूठकर और निखर जाते हो हद करते हो।
एक तस्वीर भी नहीं तुम्हारी पास मेरी,
हर तरफ तुम ही नज़र आते हो हद करते हो।
रोज़ तुम्हें हम दिल से निकालते हैं मगर,
रोज़ ही दिल में उतर जाते हो हद करते हो।
रोज़ गज़लों में उसको संवारा करते,
खुद ही खुद में बिखर जाते हो हद करते हो।
तुम्हारी हिम्मत का काईल है जमाना,
अपने साये से डर जाते हो हद करते हो।
सच कहने की भी हदबंदी है शायर,
रोज़ ही हद से गुज़र जाते हो हद करते हो।