अनिर्णीत भाव Prashant Kumar Dwivedi
अनिर्णीत भाव
Prashant Kumar Dwivediपता नहीं सच्चे प्रेम के क्या लक्षण होते हैं, क्या शर्तें होती हैं,
क्या परिभाषा होती है,
इसलिए मैं ये दावा कैसे करूँ कि
मेरा प्रेम सच्चा था या है!
सच कहूँ तो मैं पूरी तरह तुम्हारे लिए ही समर्पित भी नहीं था !
अक्सर तुम्हारी उपेक्षाओं से आहत, रूप के आकर्षणों की ललक तलब बन जाती थी!
ऐसा सैकड़ों बार हो चुका है,
अब भी होता है!
और इसी कारण मैंने अपने तुम्हारे रिश्ते को बहुत प्यार-वफ़ा वगैरह मानने की ग़लतफ़हमी
नहीं पाल रखी है,
मगर इन छिछली मोहक मुस्कानों में,
एक टीस है,
ना ना वो कतई तुम्हें वापस पाने जैसी कोल-कल्पित स्वप्न-दर्पणों के टूटने की नहीं है!
वो टीस है तो बस इतनी,
कि मेरी भावदशाओं के कारणों ,
की सत्यता अनिर्णीत रह गयी!
वो तुम्हारी उपेक्षा का प्रभाव था,
या मेरा रसियापन!
इसका निर्णय तो केवल तुम
ही कर सकती थी!
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प्रेम में आत्मिक ईमानदारी सबसे आवश्यक तत्व है,प्रेमी की भावदशाएँ उचित या अनुचित नहीं होतीं, ये तो प्रेयसी की स्वीकार्यता है कि वो अपने प्रेमी सेकितना स्वीकार करती है और कितनी बातों पर हठधर्मी बनी रहती है। हालाँकि प्रेम और हठधर्मिता दोनों की बातें एक साथ करना थोड़ा भ्रमित करने वाला है लेकिन सत्य यही है कि स्त्री-चित्त में ये दोनों एक साथ रहते हैं।