नागफनी का पौधा  Prashant Kumar Dwivedi

नागफनी का पौधा

Prashant Kumar Dwivedi

सकारात्मक सोचो!
समाज,राजनीति,जीवन को इतनी आलोचनात्मक दृष्टि से मत देखो,
न देखता !
कभी न देखता !
कभी भी न देखता !
मुझे क्यों बुरा लगता अपनी कलम से वो सब कुछ लिखना जो 
रचयिता के इस अद्भुत ब्रह्माण्ड में मेरी इन दो आँखों ने देखा !
रोज़ सुबह गंगा के तट पर रेत पर बनी वो नक़्क़ाशी, जो कोई कीड़ा बना जाता था,
जिसे हम 'राम जी का कीड़ा' कहते थे !
 

वो बचपन जो गंगा की लहरों में नहीं गंगा की गोद में बीता,
हम सीपियाँ और घोंघे वैसे ही बीनते थे,जैसे कोई बच्चा माँ की 
गोद में उसके आँचल के चमकीले
सितारों को छेड़े,
काँच मामूली दो आने के कंचो को
सूरज की ओर करके उसमें चाँद 
और सितारे देखने का कौतूहल,
पीपल और पकड़ी के पेड़ों पर हम
लच्ची-पच्ची उसी तरह खेलते थे,
जैसे दादा के मुड़े हुए घुटने से चढ़कर उनके सीने पर जा बैठना होता था,
बांस की नरम पत्तियों की नई कोंपलों से पुपली बनाकर बजाना,
गुलमोहर की गिरी कच्ची कलियों में से लाल हाथी निकालना और बिल्कुल बीचका सफ़ेद रेशा सफाई से निकलना,
बारिश में वो मख़मली लाल कीड़े,
हीरों से कम तो न थे!

लेकिन अफ़सोस!
इन कौतुहलों में उम्र कब छलाँग मारकर उस संसार में ले आयी जो मनुष्य की अपना बनाया हुआ था,पता ही नहीं चला,
सलीकों की सलाखों में क़ैद हो गयीं उन्मुक्तताएँ,
बस्ते के बोझ के नीचे वो सारा अल्हड़पन कुचल गया।
मैं 'रश्मिरथी' कई बार पढ़ना चाहता था लेकिन वो केवल 8 नम्बर का आता था,
मैं ज्यादा गहराई से समझना चाहता था कि मानव की ऐसी कौन सी विवशता थी कि उसे
जब भूख से लड़ना था तब वो एक बार नहीं दो-दो बार विश्व युद्ध लड़ा,
लेकिन एक गुलाम भीड़ के हिस्से में मैं भी बरनौली के प्रमेय और टिंडल प्रभाव पड़ते हुए,
घुटते-घुटते ही सही इंजीनियर बन ही गया।
अब जब जीवन केवल साँस लेने का गुनाह और धड़कनों का हिसाब बनता दिखा तो इसके कारण तलाशने निकला,
तलाश जारी है,शिद्दत से
(क्योंकि मुझे जीना है,ख़ूब जीना है)
लेकिन ये तलाश,ये सफ़र बड़े उबाऊ,थकाऊ और प्यासा कर देने वाले हैं,
एक ओस की बूँद भी नहीं प्यास मिटाने को,
बिल्कुल रेगिस्तान पार करने जैसी है ये तलाश,
और दसवीं में पढ़ा था,रेगिस्तान में नागफनी जैसे कँटीले पौधे होते हैं, ताकि उनके अन्दर संचित जल का पत्तियों और तनों से कम से कम जल का वाष्पीकरण हो और वो जीवित रह सकें,
मैं भी अपनी मधुरता और और सरसता का वाष्पीकरण नहीं होने देना चाहता हूँ,
इसीलिए कँटीला हो गया हूँ,
ये मेरी ओर से सकारात्मक है और  जिनको चुभता हूँ उनके लिए नकारात्मकता!

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