कविता बन जाती है Ravindra Kumar Soni
कविता बन जाती है
Ravindra Kumar Soniएक ही धरा से फूल पनपता, एक ही से बबूल,
कहीं प्रेम दुलार पनपता, कहीं घृणा के शूल।
कृष्ण पर प्रेम दिखाती मीरा, अपना दुखड़ा गाती है,
मैं जो तुम पर प्रेम दिखाऊँ, तब कविता बन जाती है।
हम तुम इतनी दूर, जितनी दूर धरा अम्बर से,
फिर भी देख तुम्हें मचले मन, ज्यों पपीहा बारिश से।
मोर जो अपना सौन्दर्य देखता, तब वर्षा हो जाती है,
मैं जो तुम्हारी सुंदरता गाऊँ, तब कविता बन जाती है।
इंद्रधनुष जब सप्तवर्णी होकर, अपना अस्तित्व बताता है,
सुंदरता के मार्ग से होकर, मन मन्दिर में खो जाता है।
चन्द्र मनोरम देख सुशोभित, नज़रें उस पर टिक जाती हैं,
मैं जो तेरा श्रृंगार लिखूँ, तब कविता बन जाती है।