तुम सम्भाल लेना Ravindra Kumar Soni
तुम सम्भाल लेना
Ravindra Kumar Soniसितारों की जगमग में, बहारों की सज -धज में,
बिखरे जो जुल्फ तुम्हारी, तुम संभाल लेना।
मदहोश हो जाती दुनिया, पी कर प्याले मदिरा के,
तुम्हें देख मदिरालय जो झूमें, तुम संभाल लेना।
चाँद चमकता अंबर में, सुंदरता के प्रति समर्पित,
देख तुम्हारी सुंदरता यदि हो जाए लज्जित, तुम संभाल लेना।
पर्वत माला खड़ी सदी से, अड़ियलता के लिए समर्पित,
देख तुम्हारा यौवन जो हो जाए धरामय, तुम संभाल लेना।
शीतलता आँखों को मिलती, देख वनों की वल्लरियाँ,
देख तुम्हारे नयनों में काजल जल जाएँ यदि कलियाँ, तुम संभाल लेना।
व्याकुल जो पपीहा बारिश को, मौन में तेरे शब्दो को,
देख तेरा वो भव्य श्रृंगार निकल जाए जो स्वर मेरा, तुम संभाल लेना।