इस चाराग़री में सब होशियार हैं सलिल सरोज
इस चाराग़री में सब होशियार हैं
सलिल सरोजइस चाराग़री में सब होशियार हैं,
वरना खुद से ही कौन गुनाहगार है।
कमी है कुछ झुके हुए मस्तकों की,
वरना तलवारें तो सब की तैयार हैं।
हर चाल में ही छिपी एक चाल है,
कौन बचेगा, किसको इख़्तियार है।
बच्चियाँ आखिर क्यों नहीं बिकेंगी,
देखिए जहाँ जिस्म का बाज़ार है।
खुशफ़हमी ही थी मुझे शराफत की,
जिससे मिला, वही शख्स बीमार है।
देखो कभी दस्ते-सितमसाई गौर से,
उतर जाएगा आँखों में जो खुमार है।