जब मिलता हूँ आदतन मुस्कुरा देता हूँ  सलिल सरोज

जब मिलता हूँ आदतन मुस्कुरा देता हूँ

सलिल सरोज

मैं जब मिलता हूँ तो आदतन मुस्कुरा देता हूँ,
कुछ उनकी सुनता हूँ, कुछ अपनी सुना देता हूँ।
 

वो बच्ची है अभी, कैसे सब कुछ कह पाएगी,
मैं अपनी कविताओं में उन्हें बुलंद ज़ुबाँ देता हूँ।
 

वो हमसफर है मेरी, मेरे साथ ही चलना है उसे,
अच्छी बताके, बुराई को निगाहों में छुपा देता हूँ।
 

चेहरा ढँका हो नूर कहाँ नज़र आएगा फिर,
रफ्ता-रफ्ता अब मैं ही पर्दा हटा देता हूँ।
 

ये इश्क़ है बहुत इम्तहां लेके ही आएगा,
जो नौसिखिए हैं बारहां उन्हें बता देता हूँ।
 

मुझे नौकरी से कभी फुर्सत मिली ही नहीं,
अच्छा हूँ, माँ जब भी पूछे तो सुना देता हूँ।

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