कौम बातों से कैसे बहल जाएगा सलिल सरोज
कौम बातों से कैसे बहल जाएगा
सलिल सरोजकल कोई और शहर जला था
आज ये शहर भी जल जाएगा,
जो अब भी नहीं जगे नींदों से
ये शमा खौफ में बदल जाएगा।
ज़ुल्म हुआ है तो चीखना सीखो
वर्ना ज़ुबां पत्थरों में ढल जाएगा,
ये ज़द्दोज़हद है खुद के होने की
क्या वायदों से सब बदल जाएगा।
भूख तमाम रात जगाए रखती है
कौम बातों से कैसे बहल जाएगा,
यूँ ही डर से सहते रहे गर तुम सब
तो आज गया है वो कल भी जाएगा,
बँध मुट्ठी से कब क्या बदलता है
और तुम समझते हो सब संभल जाएगा।