परिश्रम जो तेरा तू ही जानता है  Ravindra Kumar Soni

परिश्रम जो तेरा तू ही जानता है

Ravindra Kumar Soni

परिश्रम जो तेरा तू ही जानता है,
जमाने से डर मत ये परिणाम माँगता है।
 

तू जो सहन कर रहा है बुराई-भलाई,
लगेगी ये सारी मधुर शहनाई।
 

ये सफलता का मंत्र सभी ने सहा है,
जो ना सह सका कहीं का ना रहा है।
 

बहती नदी भी पाती है सागर,
पहाड़ों से चलकर मचलकर महक कर।
 

निरंतर वो चलती लाख दुःखों को सह कर,
तब मिलती सफलता तब मिलता है सागर।
 

तू भी चल निरंतर गतिमान बनकर,
ना थकना, ना रुकना निराश होकर।
 

प्रभु को ना कोस ये उसने भी सहा है,
ये है उसी की विविधता उसीने रचा है।
 

ना बनता जो सेतु मिलती ना सीता,
होता ना युद्ध तो बनती ना गीता।
 

ना रहना कभी किस्मत के सहारे,
किस्मत भी बनती मेहनत से प्यारे।
 

तू सहज ही सुख-दुख के डर से भागता है,
मत डर जमाने से ये परिणाम माँगता है।

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