मिठास DEVENDRA PRATAP VERMA
मिठास
DEVENDRA PRATAP VERMAघर आओगे
उसने पूछा नहीं
कुछ बात है।
गुमसुम सी
केश खुले-बिखरे
हाँ नाराज़ है।
स्नेह की कली
विरह के नभ की
धूप में खिली।
मुरझाई सी
हृदय से लिपट
हरी हो गई।
अनुपम है
रूठने मनाने में
जो मिठास है।
बिखरे हुए
सुर मृदुभाव के
लय बद्ध हैं।
"विनीत" मन
गीत रच प्रेम के
करबद्ध है।
