छोटा सा कमरा DEVENDRA PRATAP VERMA
छोटा सा कमरा
DEVENDRA PRATAP VERMAवो शहर के नुक्कड़ का बड़ा मकान
और उसका छोटा सा कमरा,
स्मृतियों के पार
कहीं भूला कहीं बिसरा।
असफलताओं से निराश,
मुझे देख उदास,
मुझसे लिपट गया
और बोला,
चल मेरी सूनी पड़ी
दीवारों को फिर सजाते हैं,
और कुछ नए स्लोगन आदि
यहाँ चिपकाते हैं।
भूल गया
कैसे अपने हर इम्तिहान से पहले
तू अपना हौसला बढ़ाता था,
और नए टाइम टेबल, प्रेरक पंक्तियों
और छाया चित्रों से मुझको सजाता था।
मैं घंटो कौतूहल वश
तेरे संग इस आनंद में खोया रहता,
और वह मोहक दृश्य
अपनी आँखों में कैद कर लेता
जब अध्ययनरत थक कर
तू सोया रहता।
वो वक़्त बेवक्त
तेरे मित्रों का आना,
हँसना हँसाना,
वाद-विवाद और फिर
विचारों की गहराईयों में डूब जाना
नित्य नई उमंग नया उत्साह जगाता,
और वह जिसे गम कहते हैं
कहीं दूर तक नज़र नहीं आता।
कुछ याद है
जब उस पवित्र प्रेम की आहट ने
तेरा मन छुआ था,
तो उसका एहसास
तुझसे पहले मुझे हुआ था,
और वह तस्वीर जो तूने
मेरी दीवार पर लगाकर कभी फाड़ दी थी,
तू रोया था
और ये दीवारें भी तेरा साथ दी थीं।
तेरे स्वभाव, समझ
और ख्यालों से वाकिफ़ था मैं,
जिससे तू अनभिज्ञ
उसमें भी शामिल था मैं।
मेरा जो यह एक कमरे का स्वरूप है,
कुछ और नहीं है तेरे खालीपन का अभिरूप है।
आज जीवन की आपा धापी में,
न जाने किस-किस का बोझ उठाए
तू स्वयं से परे जा रहा है,
और अनायास ही नित्य नए
संघर्ष को आमंत्रण दिए जा रहा है।
स्वयं से यह विरह
तेरी असफलताओं का कारण है,
गौर से देख तू
स्वयं प्रत्यक्ष इसका उदाहरण है।
तो फिर क्यों न मैं और तुम साथ बैठ,
पहले की तरह
सफलताओं असफलताओं का विश्लेषण करते हैं,
और सब कुछ दरकिनार रख
तुझसे मिलते हैं।
तू वह जिसे तू जानता है
या मैं जानता हूँ
और मैं वही
तेरे खालीपन का अभिरूप,
स्मृतियों के पार
कहीं भूला कहीं बिसरा
शहर के नुक्कड़ का बड़ा मकान
और उसका छोटा सा कमरा।