नहीं है आरज़ू कि फिर से बेटी बनूँ सलिल सरोज
नहीं है आरज़ू कि फिर से बेटी बनूँ
सलिल सरोजनहीं है आरज़ू कि फिर से बेटी बनूँ,
हर घर की अंतिम, सूखी रोटी बनूँ।
करूँ अपनी हर इच्छा से समझौता,
मान, मर्यादा में भी सबसे छोटी बनूँ।
हर विपदा-विपत्ति की सहगामिनी,
और बात-बात में खरी-खोटी बनूँ।
हर किसी के आगे परोस दी जाऊँ,
किसी लाश की ज़िन्दा बोटी बनूँ।
सब नियम-कानून मुझ पर हावी,
क्यों कोई वेद-पुराण मोटी बनूँ।