प्यार की लौ  DEVENDRA PRATAP VERMA

प्यार की लौ

DEVENDRA PRATAP VERMA

एक प्यार की लौ जलाना जो नफरत मिटा सके,
ज़िन्दगी से अंधेरों की कुदरत मिटा सके।
 

शबनम को हौसला दो अंगारा बनके निकले,
आसमा में चमकता सितारा बनके निकले।
 

बहारों से कहो कुछ ऐसे फूल खिला दें,
ग़मो के से में जो हँसना सिखा दे।
 

खामोशियों को आवाज़ दो तूफ़ान उठा दे,
भटकी हुई हवाओं को रास्ता दिखा दे।
 

काँटों को हक़ दो फूलों के संग रह सकें,
गुलशन उजाड़ने वालों की तबीयत बदल सकें।
 

बादलों को पैग़ाम दो नूर बरसाएँ,
जमीं पे चाहतों की बारात ले आएँ।
 

साहिल को ज़ोर दो तूफानों के तेवर बदल सके,
डूब रही किश्तियों की किस्मत बदल सके।

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