आज़ादी को भी नई आज़ादी चाहिए  सलिल सरोज

आज़ादी को भी नई आज़ादी चाहिए

सलिल सरोज

इन खुली फ़िज़ाओं में जो आज़ाद लहर बहती है,
वो चीख़-चीख कर हर एक से बस यही कहती है,
घर-बार, दौलत-शोहरत सब तो तुम्हें दे दिया है,
बस मेरी जगह ही तुम्हारे दिल क्यों नहीं रहती है।
जिन हाथों को सौंपा था अपनी जिम्मेदारियों को,
वो हाथ आज तलक भी आज़ादी को तरसते हैं।
हर स्वतंत्रता दिवस और गणतन्त्र दिवस पर,
कुछेक के दरवाज़े से बंधी आज़ादी बिलखती है।
अब तो आज़ादी को भी नई आज़ादी चाहिए,
साल दर साल किसी चिंगारी सी सुलगती है।

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