प्रिये अनुपम श्रृंगार तेरा  Ravindra Kumar Soni

प्रिये अनुपम श्रृंगार तेरा

Ravindra Kumar Soni

सज्जित चंद्र सितारों से सुरभित नयन तुम्हारे,
देख तेरे नयनों में काजल हम जग हारे,
यूँ इठलाती जुल्फों में बंधा है जीवन गान प्रिये,
छीन ना ले अधिकार मेरा, प्रिये अनुपम श्रृंगार तेरा।
 

सूर्य के तेज सी चमके तेरे माथे की बिंदिया,
अधरों की लाली तेरी उड़ा ना दे मेरी निंदिया,
महके मलय बयार सा तेरा गजरा मनुहार प्रिये,
बोल ना दे उद्गार मेरा, प्रिये अनुपम श्रृंगार तेरा।
 

शोभित कानों में कुण्डल, दर्पण कर देते घायल,
वीणा झरनों सी करती तेरे पैरो में पायल,
मधुर कंगन नाद पर जाऊँ मैं बलिहार प्रिये,
बने ना जीवन सार मेरा, प्रिये अनुपम श्रृंगार तेरा।

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