इस हसीन शहर में बसिए ज़रा सलिल सरोज
इस हसीन शहर में बसिए ज़रा
सलिल सरोजक़त्ल कीजिए और हँसिए ज़रा,
इस हसीन शहर में बसिए ज़रा।
बाँहों में कैद दरिया तो घुट गया,
अब दो बूँद पानी को तरसिए ज़रा।
बेवक़्त बरसात होके दूजों तबाह किया,
कभी अपने आँगन में भी बरसिए ज़रा।
सुना बहुत ख़ौफ़ है ज़माने में आपका,
फिर तबीयत से खुद पे भी गरजिए ज़रा।
सब काम तो खुदा ही नहीं कर देगा,
आप भी हुज़ूर कुछ रात जगिए ज़रा।