यूँ लगा कि तुम आ गई  Ravindra Kumar Soni

यूँ लगा कि तुम आ गई

Ravindra Kumar Soni

निशा अंधकार की बीत गई,
विरह, विषाद की रीत गई,
दूर हुए व्यवधान अपने मनमीत हुए,
जब मिले नयन दीप्त प्रेम के गीत हुए,
विरह विभावरी पर भोर छा गई,
यूँ लगा कि तुम आ गई।
 

बहती पवन से मचल उठी बागों की कलियाँ,
नदियों की सरगम से महक उठी खामोश गलियाँ,
सितारों सी चमक गई चाँदनी उपवन में,
खिल उठे पुष्प बहारों से मेरे मन में,
जब मरुथल में बहार छा गई,
यूँ लगा कि तुम आ गई।
 

गीतों की तान बज उठी मौन मन में,
सुरों सी सज गई बहार हर क्षण में,
बज गए साज मौन झरनों से,
गूंज उठा गीत रवि किरणों से,
जब सुरों में रागिनी छा गई,
यूँ लगा कि तुम आ गई।
 

हुआ रंगीन अंबर मेघ प्यार में,
बरसी घन घोर घटा बयार धार में,
नीड़ निर्माणों के फिर से हरे हो गए,
धुली धरा नवगीत मंगल भरे हो गए,
मानो प्रलय से नवीनता छा गई,
यूँ लगा कि तुम आ गई।

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