ये दौर-ए-इम्तेहान है सलिल सरोज
ये दौर-ए-इम्तेहान है
सलिल सरोजये दौर-ए-इम्तेहान है, बस खुदा का नाम लो,
ऐसे वक्त में तो काज़ी नज़ाकत से काम लो।
क्या सोचा तुम्हारे कर्मों का हिसाब नहीं होगा,
अब अपनी सफाई के सारे साज़ो-सामान लो।
ये तमाम रियासतें धरी की धरी ही रह जाएँगी,
अपने गुनाहों की माफी अब सुबहो-शाम लो।
जिस्म सारा दुहरा जा चुका बेदिल कामों में,
अब तो बच्चों के साथ दो वक्त आराम लो।
मंदिर-मस्जिद करके तुमने बहुत घर हैं तुड़वाएँ,
अंतिम घड़ी में ही सही, अमन का पैग़ाम लो।
कोई मिल्कियत नहीं टिकती उसके दरबार में,
अपनी ज़ुबान पे कभी अल्लाह तो कभी राम लो।