बदलते दौर में इज़्ज़तदारों का खानदान हूँ सलिल सरोज
बदलते दौर में इज़्ज़तदारों का खानदान हूँ
सलिल सरोजमैं अपनी मुख़्तलिफ़ शाइस्तगी से ही परेशान हूँ,
खबर है दुनिया की और खुद से ही अन्जान हूँ।
दोस्त जितने थे आज सब रसूख़दार हो गए,
एक ज़माने से मैं दुश्मनों के ही निगेहबान हूँ।
आँधी आई भी नहीं और चराग सारे बुझ गए,
मैं ऐसे रिश्तों की कलाकारी का कद्रदान हूँ।
गीत बहुत गाए गए जो महफिलों को रास आए,
मैं तो चुभती हुई ग़ज़लों का ही उनबान हूँ।
अँधेरे की चाहत हो तो सूरज भी नहीं दिखता,
पर मैं अँधेरे घरों का जीता-जागता रोशनदान हूँ।
सूरत कोई भी सीरत यूँ ही नहीं बदली जाती,
मैं बदलते दौर में भी इज़्ज़तदारों का खानदान हूँ।