आज का अखबार आ गया सलिल सरोज
आज का अखबार आ गया
सलिल सरोजमोहल्ले में झूठ-फरेब और दंगों का कारोबार आ गया,
लगता है सब के घरों में आज का अखबार आ गया।
थर्मस, ड्रेस, बेल्ट, जूते, किताब सब हैं बस तालीम नहीं,
यकीनन स्कूलों में उठकर कोई बाज़ार आ गया।
तहज़ीब, इज़्ज़त और शराफत सब हैं निहायत नदारद,
जब से बच्चों के हाथों में खतरनाक औजार आ गया।
धर्म की आड़ में क्या कुछ नहीं बिकने लगा है,
जब से व्यापार में मन्दिर और मजार आ गया।
इस अमीरी से तो ग़ुरबत के ही दिन अच्छे थे,
दो पल चैन के नहीं, ज़िंदगी में बेक़ाबू रफ़्तार आ गया।
क़त्ल, बलात्कार, चोरी, सीनाज़ोरी सब चरम पे,
और साहेब कहते हैं बम्पर रोज़गार आ गया।
फिर से मुद्दे उछाले जाएँगे, खोखले दावे किए जाएँगे,
बेशक कहीं न कहीं चुनाव का त्योहार आ गया।