हम फिर तन्हा रह गए सलिल सरोज
हम फिर तन्हा रह गए
सलिल सरोजसूनी राहों पर नाकाम हसरतें तमाम रह गए,
कुछ तेरे हिस्से रह गए, कुछ मेरे हिस्से रह गए।
मोहब्बत में लिपटे हुए आरज़ुओं के हसीन फूल,
कुछ गुल बनकर खिले, कुछ अनखिले रह गए।
तुम्हारी हर हँसी पे लिखे गए मेरे अज़ीज़ खत,
कुछ निगाहों से पढ़े गए, कुछ अनपढ़े रह गए।
तुम्हारी आँखों से भी कुछ आँसू ढलके तो थे,
तुम्हारी मायूसी सबको दिखे ,मेरे छिपे रह गए।
तुमसे मिलके जीने की तमन्ना जाग उठी थी,
पर आधे रास्ते से तुम गए, और हम फिर तन्हा रह गए।