अपना वजूद सलिल सरोज
अपना वजूद
सलिल सरोजजीवन की उथल-पुथल
के बीच
अपना वजूद ढूँढ रहा हूँ।
शंकाओं, निराशाओं
से घिरे परिधि पर
एक साकार ढूँढ़ रहा हूँ।
कलरव करते स्वछंद
पक्षी की भाँति
जीवन का आधार ढूँढ रहा हूँ।
चुनौतियों के समक्ष
डटकर टिकने को
स्नेहिल आभार ढूँढ रहा हूँ।
मंज़िल की तत्परता ही नहीं
प्रयासों को भी सराहता हुआ
मैं संसार ढूँढ़ रहा हूँ।