उसकी आँखें सलिल सरोज
उसकी आँखें
सलिल सरोजउसकी आँखों में
एक नदी है,
निर्मल, चंचल, कलकल,
जिसमें डूबते ही
मैं उबरने लगता हूँ।
सुबह, शाम, पल-पल
नदी के मुहाने पे,
काजल की पनघटों में
दिन-रात है हलचल,
उठते-गिरते पलकों के
थपेड़ों से सरगम गाती
उज्ज्वल, उत्कल, बेकल।
आँसुओं की धारों में
निराशाओं को धोती जाती,
निर्झर नदी का आँचल।