हिन्दी DEVENDRA PRATAP VERMA
हिन्दी
DEVENDRA PRATAP VERMAभारत माँ की भाषा हिन्दी,
कवियों की अभिलाषा हिंदी,
ख्वाब सँजोए अंतर्मन की,
मधुमय शीत सुवासा हिन्दी।
अखिल विश्व में है सम्मान,
सार्थक सकल प्रतिष्ठावान,
देश काल से परे कांतिमय,
अनुपम सी उल्लासा हिंदी।
माघ महाकवि का श्रृंगार,
भारतेंदु का चिर सत्कार,
तुलसी की चितवन चौपाई,
नवयुग की परिभाषा हिंदी।
मीरा के सुर, भजन सूर के,
कालजयी दोहे कबीर के,
चंचल दृष्टि बिहारी की रति,
रहिमन की प्रत्याशा हिंदी।
सहज भाव में पीर उकेरे,
दुख दुखियों के हैं बहुतेरे,
महादेवी निराला दिनकर,
सबकी शोक पिपासा हिंदी।
शब्दों से सेवा नित करते,
नवांकुर आलोक उभरते,
कहाँ छोर है मानस तट का,
प्रकट करे जिज्ञासा हिंदी।
हिंदी की सेवा का वर दो,
हे ईश्वर वह दृष्टि मुझे दो,
देख सकूँ तेरा विस्तार,
तू शिव तो कैलाशा हिंदी।