रुको ! वो आएँगे  SHRIYANSH SRIVASTAVA

रुको ! वो आएँगे

SHRIYANSH SRIVASTAVA

लोग आएँगे ज़रा घूम कर
उसी पुराने मकान में,
ज़माने में मसाले चटकदार मिलते हैं,
पर लिबलिबाती जीभों पर छाले पड़ेंगे,
बस थोड़ा इंतज़ार करना होगा,
बचा कर रखना होगा अमृतरस,
ध्यान रखना होगा कहीं भस्म न हों नौजवान,
जिनकी ज़िन्दगी के प्याले में काम ज़्यादा है।
 

बचा कुचा अर्थ मिला लिया है,
धर्म और मोक्ष की गिलास में जगह नहीं,
ऊपर नक्काशी पर झलकते हैं कभी,
पर यह सब दिखता नहीं उन्हें,
नशे में धुत हैं बेचारे,
चार्वाक ज़िंदा है अभी उनका,
विवेकानंद बैठें हैं कोने में ज्ञान धारा बह रही है,
कुछ प्यासे गला सींच रहे हैं,
बाकी आएँगे क्योंकि प्यास सबको लगती है।
 

बस जीवन रहना चाहिए,
ज्ञान पानी इसी लोटे में भरपूर आता है,
मैंने पीना शुरू किया है,
भारत ! इधर आओ पीयो अद्भुत ! रसहीन ! रसयुक्त !

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