फिर वो मुझको पुकारती होगी ! Ravindra Kumar Soni
फिर वो मुझको पुकारती होगी !
Ravindra Kumar Soniफिर वो मुझको पुकारती होगी ...
देखती होगी सितारों को,
रात बैचैन हो काटती होगी,
फिर वही ख्वाब आते होंगे,
वो खिड़कियों से निहारती होगी,
फिर वो मुझको पुकारती होगी।
रूठती होगी खुद से,
खुद को फिर मनाती होगी,
जीतती होगी एक रात खुद से,
फिर एक रात आती होगी,
फिर वो मुझको पुकारती होगी।
करती होगी श्रृंगार वही,
खुद को सँवारती होगी,
लगा कर बिंदिया माथे पर,
वो काजल नयनों में धारती होगी,
फिर वो मुझको पुकारती होगी।
करती होगी बहाने फिर वही,
सपनों को फिर से टालती होगी,
फिर वही मौसम आते होंगे,
वो उड़ती ज़ुल्फ़ें सँवारती होगी,
फिर वो मुझको पुकारती होगी।
देखती होगी उन गलियों को,
फिर उन्ही में खो जाती होगी,
याद कर एक युग को,
फिर एक युग हारती होगी,
फिर वो मुझको पुकारती होगी।