रस्म की शुरुआत मेरे बाद कीजिए सलिल सरोज
रस्म की शुरुआत मेरे बाद कीजिए
सलिल सरोजइस रस्म की शुरुआत बस मेरे बाद कीजिए,
जिनसे रौशन है हुस्न, उन्हीं को बर्बाद कीजिए।
गर पूरी होती हो यूँ ही आपके ख़्वाबों की ताबीरें,
तो खुद को बुलबुल और मुझे सैय्याद कीजिए।
ये कि क्या हुज़्ज़त है आपके नूर-ए-नज़र होने की,
दिल की बस्तियाँ लुट जाएँ, और फिर हमें याद कीजिए।
जो थे सितमगर, सबको अपनी निगाहों में बसा लिया,
अब गमों से घिरे हैं, फिर क्यों फरियाद कीजिए।
बस अपने की चर्चे रहे महफ़िल में हर कदम,
आप कहाँ खोई रहीं कि अब आप दाद कीजिए।