गर हो तुम्हारी इज़ाज़त सलिल सरोज
गर हो तुम्हारी इज़ाज़त
सलिल सरोजगर हो आज तुम्हारी इजाज़त मुझे तो,
आसमाँ पे तुम्हारी इबारत लिखना चाहता हूँ।
तमाम दौलतें एक तरफ और तुम्हारी एक मुस्कान,
मैं तुम्हारी मुस्कान पर भरे बाज़ार बिकना चाहता हूँ।
रात की चादर हटे और तुम्हारा रूप खिले तब,
मैं तुम्हारे माथे पर ओंस सा चमकना चाहता हूँ।
कभी जुनून, कभी तिश्नगी, कभी आशना,
तुम जैसा चाहो अब, मैं वैसा दिखना चाहता हूँ।
तुम बन जाओ बस मेरी आखिरी मंज़िल,
मैं थक गया सफर से, अब रुकना चाहता हूँ।