माली निकला ग़द्दार  Ravindra Kumar Soni

माली निकला ग़द्दार

Ravindra Kumar Soni

एक फूल दिया था माली को,
माली निकला गद्दार।
 

जिनको समझा सुख की नौका
वो निकले दुख के सागर,
हमने डोली सौंपी थी जिनको
निकले डाकू वही कहार,
एक फूल दिया था माली को,
माली निकला गद्दार।
 

जाना जिनको साहिल तट का
वो निकले भंवर की धार,
डूब गई कश्ती उनसे
सौंपी जिनको पतवार,
एक फूल दिया था माली को,
माली निकला गद्दार।
 

जाना जिनको साथी अपना
गए वो रूप से हार,
जिनको रथ का पहिया जाना
निकले वो रथ के द्वार,
एक फूल दिया था माली को,
माली निकला गद्दार।

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