मैं काविता गाने आया हूँ  Ravindra Kumar Soni

मैं काविता गाने आया हूँ

Ravindra Kumar Soni

शरमाए चंदा भी देख कर, जुगनू भी भरमाए हैं,
रूप देख कर तेरा यह फूल नवल के खिल आए हैं,
खिले हुए उन फूलों की खुशबू फैलाने आया हूँ,
मैं कविता गाने आया हूँ - 2
 

श्रृंगार सजाता आया तुमको, अब शब्द सजाने आए हैं,
इस रूप से मोहित होकर वह गीत सुनाने आए हैं,
गीतों की उस सरगम को मधुर बनाने आया हूँ,
मैं कविता गाने आया हूँ - 2
 

देख रंगीले मौसम को फिर याद तुम्हारी आई है,
घूम रहा था मन बागी सा फिर से घर ले आई है,
यादों के उन किस्सों को संगीत बनाने आया हूँ,
मैं कविता गाने आया हूँ - 2
 

देख तुम्हारे अधरों की ओर हुई मादक हाला,
झूम रहे हैं प्याले भी भ्रमित हुई वह मधुशाला,
अधरों की उस मादकता को कागज पर लिखने आया हूँ,
मैं कविता गाने आया हूँ - 2
 

सूरज की किरणें ढली हुई, अब रात अंधेरी आई है,
घिरी हुई यह विरह प्रेम से, प्रखर चाँदनी लाई है,
उसी चाँदनी को मैं तेरे मस्तक पे सजाने आया हूँ,
मैं कविता गाने आया हूँ - 2

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