होता नहीं सलिल सरोज
होता नहीं
सलिल सरोजवो आँखों में होता है जो निगाहों में होता नहीं,
जो हो इश्क़ में उसे फिर कोई होश होता नहीं।
दवा, दुआ, शाइस्तगी, हमनफ्सगी सब बेकार,
वो ज़ख़्म भी दें तो दर्द जरा भी होता नहीं।
मीर, मोमिन, ग़ालिब, दाग सब को पढ़ डाला,
लफ्ज़ अपना न हो तो इश्क़ पूरा होता नहीं।
वो नज़रें ना उठाएँ वल्लाह वो नज़रें न झुकाएँ तो,
इस ज़मीं पे कहीं दिन, कहीं रात होता नहीं।
बिना उसकी बंदगी, बिना उसकी शागिर्दी के,
मंदिरों में आरती, मस्जिदों में अजान होता नहीं।