यकीनन माली का बहा हुआ खूँ होगा सलिल सरोज
यकीनन माली का बहा हुआ खूँ होगा
सलिल सरोजकौन होगा जिसे नहीं तेरी जुस्तजू होगी,
फ़िज़ा में दूसरा कहाँ ऐसा रंगों-बू होगा।
ये गुलाबों के लबों पे यूँ ही लाली नहीं,
यकीनन माली का बहा हुआ खूँ होगा।
अभी भी वक़्त है बदल दो ये सारे मंजर,
वरना खौफ के साए में वतन हरसूं होगा।
मत करो यूँ परीशां खुद को मेरे नाम से,
नहीं तो इश्क़ बदनाम कू-ब-कू होगा।
बहा दो कोई दरिया मेरे भी सूखे गाँव से,
तभी बूढ़े बरगद को थोड़ा शुकूँ होगा।
ज़िन्दगी बस लिपट जाएगी उसी के गले,
जिसकी ज़ुबाँ पे मिठास, जज़्बों में जुनूं होगा।